बचपन के खेल
जब से याद हमें जीवन है ,बचपन के हैं खेल अनोखे ,
गेंद था शायद पहला खिलौना ,उसके बाद तो पिट्ठू आए |
बना फर्श पर दस नंबर का खेल ,स्टापू से खेले हम ,
कंचे बहुत ही प्यारे लगते ,उनसे भी खूब हम |
खूब ही कूदे रस्सी से ,अकेले भी और समूह में भी ,
इन सबके अलावा ,छुपन - छुपाई ,आईस - पाईस ,
पकड़म - पकड़ी ,ऊँच - नीच ,सब ही थे खेल हमारे ,
लूडो ,साँप - सीढ़ी ,जीरो - काँटा ,सी - सॉ ,
झूला ,फिसल - पट्टी ,क्या - क्या थे खेल हमारे ?
झूला तो बहुत बाद तक झूले ,
आज भी उसका मज़ा लेते हैं ,
आज तो यही कुछ शब्द याद आते हैं ,
कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन ,
वो बीते हुए खेल ,वही उम्र ,वही चाह |
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