झोली
जीवन और साँसें मिलीं हैं मुफ्त ,
मगर प्राणी तू कहाँ संभाले ?
ऊपर वाले की देन को ,तू तो व्यर्थ गँवाए |
नींद और शांति मिलीं बहुत हैं ,
पर तू जीवन अशांत बनाए ,
मिलीं मुफ्त की चीजों की तू ,
कीमत समझ ना पाए |
हवा और पानी हैं बहुत जरूरी ,
क्यों इनको व्यर्थ बहाए ?
क्यों तू इनको गंदा करके ?अपना जन्म गँवाए ?
सब कुछ दिया ऊपर वाले ने ,
मत उनको व्यर्थ गँवा तू ,
ऊपर वाले की देन से प्राणी ,
भर ले अपनी झोली तू |
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