विलीन
हुई जो बर्फ़बारी ,आसमां से ,
पर्वतों ने बर्फ को रोका ,कहा मुस्का के ,
रुक जाओ , मैदानों में तुम नहीं जाओ ,
ढलानों पर ही ठहर जाओ |
बर्फ को भी लगा ,सुंदर यह विचार ,
ठहर गई वह ,पर्वतों की ढलानों पर ,
सूर्य की किरणों ने जब उस ,
बर्फ को खूब चमकाया ,तो मानव ललचाया ,
यह सुंदर नज़ारा -- काश मेरे पास होता |
सूरज की किरणोंने धीरे - धीरे ,
उस बर्फ को ऐसे पिघलाया , बर्फ से बना पानी ,
पानी की धारा ,रूप ले नदिया का ,
चली इठलाती ,बलखाती ,ढलानों से नीचे को |
नदी लहराती हुई दौड़ी ,धरा को उपजाऊ बनाती ,
मैदानों में हरियाली बढ़ती गई ,
और दौड़ती गई ,दौड़ती गई ,
मीठे जल ,ठंडे जल से ,सभी की प्यास बुझाती गई ,
छलछलाती नदिया , अंत में जाकर सागर में ,
विलीन हो गई ,विलीन हो गई |
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