जीवन धन
हवा का झोंका आया रे ,दिया नहीं दिखाई रे ,
पकड़ो ,पकड़ो उसे दोस्तों ,जाने ना दो उसको रे ||
साँस हमें दे कर के ,दूर वह जाता रे ,
जीवन की नैया को ,वह ही पार लगाता रे ||
पकड़ के देखो हाथों से ,क्या वह हाथ में आता रे ?
नहीं ,नहीं वह तो चंचल ,उड़ - उड़ कर चला जाता रे ||
रंग नहीं उसका कोई ,रूप नहीं उसका कोई ,
मगर सारी सृष्टि को ,जीवन धन दे जाता रे ||
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