प्रतिलिपि के भाव
नोट -- दोस्तों प्रतिलिपि द्वारा दिए गए कहानियों के
शीर्षक पिरोकर यह कविता बनी है ,अपनी राय
जरूर दीजिएगा ,धन्यवाद |
कविता ---
जन्म जब लिया हमने ,रहे दुनिया से हम अनजान ,
अज्ञात थी दुनिया ,अज्ञात उसके रास्ते ,
साथ पा गुरुओं का ,खुले उनके ताले ,
रहस्यमय चाबी से ,खुला अज्ञात रास्ता ,
चल पड़े हम रातों के सफर से ,
अज्ञात सागरों से ,ख़ुशी और गम के सागर से ||
प्रकृति की सुंदरता ,साथ दोस्तों का ,
प्यार और स्नेह ने ,हाथ पकड़ा हमारा ,
अपनों के आँगन से निकल हमने ,
बाहर की दुनिया ,देखने का अवसर मिला ,
जो स्वप्नों की नगरी से अलग थी ,
हमारे देखे हुए ,सपनों से अलग थी ||
मिलने वाले शख्स थे अनजान ,
अजनबीं थीं सभी ,जो बन गईं सहेलियाँ ,
इंद्रधनुषी ,रंगीन आसमान के नीचे ,
गुनगुनाए गए मीठे गीत और ,
बिना आवाज के ही हो गई अनोखी चोरी ,
ये चोरी थी हमारे दिल की ,
मिल गया एक हमसफ़र ,एक सच्चा साथी ,
जिंदगी के सभी रास्ते ,फूलों भरे हो गए ||