Friday, December 1, 2023

SAAGAR MUKHI ( RATNAAKAR )

 

                             सागर मुखी 


आज मैं सागर किनारे ,खड़ी सागर को पुकारूँ ,

आजा तू पास मेरे ,बतियाएँ हम दोनों ,

बढ़ आईं उसकी लहरें ,बोलीं वो मुझसे ऐसे ,

हम आएँ  हैं सखि लेने ,आ जाओतुम अंदर || 


हाथ पकड़े वो मेरा ,ले चलीं साथ अपने ,

मैं भी खिलखिलाती ,चली कदम बढ़ाती ,

सागर भी मुस्कुराया ,मुझे देखकर ,

  जब उसने मुझको ,अपने द्वार में खड़ा पाया || 


बातें होने लगीं मेरी ,दोस्तों के साथ ,

मैं खुश थी ,वह भी खुश था ,

दोनों ही अपनी बातों में ,यूँ मगन थे ,

लहरों का ध्यान भी ,हमको नहीं था आया || 


काफी समय बीता ,बातों के सिलसिले में ,

फिर लौटने का ख्याल ही ,अचानक मुझको आया ,

मैं बन गई थी मानो ,एक लहर सागर की ,

सागर ने भी विदा करते ,मुझको गले लगाया ,

क्योंकि मैं ही तो हूँ सागरमुखी || 


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