सागर मुखी
आज मैं सागर किनारे ,खड़ी सागर को पुकारूँ ,
आजा तू पास मेरे ,बतियाएँ हम दोनों ,
बढ़ आईं उसकी लहरें ,बोलीं वो मुझसे ऐसे ,
हम आएँ हैं सखि लेने ,आ जाओतुम अंदर ||
हाथ पकड़े वो मेरा ,ले चलीं साथ अपने ,
मैं भी खिलखिलाती ,चली कदम बढ़ाती ,
सागर भी मुस्कुराया ,मुझे देखकर ,
जब उसने मुझको ,अपने द्वार में खड़ा पाया ||
बातें होने लगीं मेरी ,दोस्तों के साथ ,
मैं खुश थी ,वह भी खुश था ,
दोनों ही अपनी बातों में ,यूँ मगन थे ,
लहरों का ध्यान भी ,हमको नहीं था आया ||
काफी समय बीता ,बातों के सिलसिले में ,
फिर लौटने का ख्याल ही ,अचानक मुझको आया ,
मैं बन गई थी मानो ,एक लहर सागर की ,
सागर ने भी विदा करते ,मुझको गले लगाया ,
क्योंकि मैं ही तो हूँ सागरमुखी ||
No comments:
Post a Comment