दे दूँ
हैं मेरे हाथ खाली ,तुम्हें क्या दूँ मैं बंधु ?
मगर हाँ ! दिल भरा है प्रेम और सम्मान से ,
क्या ,वही मैं तुमको दे दूँ ?
अगर होती ,जो धन - दौलत ,वो तो खर्च हो जाती ,
खर्च होने से उसकी। कीमत कम ही हो जाती ,
तो वह क्यों ,तुमको मैं दे दूँ ?
मगर ये प्रेम और सम्मान तो ,गर खर्च भी कर दो ,
खजाना इनका बढ़ता जाएगा ,चाहे कितना भी बांटो ?
तो फिर रहा यह तय ,यही मैं तुमको ही दे दूँ ||
No comments:
Post a Comment