मोती - माणिक
मोती - माणिक गहि रहे ,बाकि देय भुलाय ,
अपनेपन की नाव में ,सबको लेय बिठाय ||
कागा सब कुछ खात है ,हंस मोती चुग जाय ,
जीवन सब का अलग है ,सब ही अलग बिताय ||
अपनापन जीवन में हो ,भाव सागर तर जाय ,
तब ही अपनी आत्मा ,परमात्मा से मिल जाय ||
मोती - माणिक सा जीवन ,परमात्मा ही भिजवाय ,
मानव उसको धरा पर ,ख़ुशी - ख़ुशी बिताय ||
No comments:
Post a Comment