गीत
गुलज़ार साहब ने एक गीत लिखा था ,
मेरा कुछ सामां तुम्हारे पास पड़ा है ,
बहुत सुंदर और बहुत ही प्यारा गीत ,
पूरे ही जग से निराला गीत ,
उसी गीत से प्रेरित ,मेरे भी शब्द खिले ,
और बन गया ,मेरे भावों से भरा गीत ||
बचपन के गलियारों में ,गूँजते मेरे ठहाके ,
सहेलियों को पुकारती ,मेरी खिलती पुकारें ,
उन्हीं में सुनाई देतीं ,मेरे कदमों की आहटें ,
अगर मिल जाएँ ,तो उनका पता मुझे दे दो ||
बचपन के कुछ बरसों बाद ,
गुनगुनाहटों में बीतते ,वो सुंदर से लम्हे ,
जिंदगी से भरपूर ,वो हमारे कहकहे ,
दौड़कर सिनेमा हॉल में पड़ते ,वो हमारे कदम ,
पहले दिन ,पहला शो देख कर ,
वो आँखों का चमकना ,होठों का मुस्कुराना ,
इन सबका पता यदि मिल जाए ,
तो आज भी गुनगुना उठेंगे हमारे गीत ||
No comments:
Post a Comment