चंद्र मुखी
चंद्रमा को देख - देख ,मैं बनी चंद्र मुखी ,
रोज - रोज चंद्रमा से ,बात मैं करूँ ,
रात को सो जाएँ सब ,मैं जागा करूँ ,
उसी से तो मैं ,खुश हूँ मेरी सखि ||
चंद्रमा खिड़की से बाहर ,गुहार ये लगाए ,
खिड़की पे आजा तू ,हम दोनों ही बतियाएँ ,
मैं दौड़ कर खिड़की पे ,पहुँच जाऊँ मेरी सखि ||
बातों का सिलसिला ,हमारा चलता ही जाए ,
करके ढेरों बातें ,हम दोनों मुस्कुराएँ ,
कैसे समय हमारा ,लंबा ही बीता जाए ?
भोर का तारा ,जब हमको नजर आए ,
तब चंद्रमा भी दौड़ लगा ,घर जाए मेरी सखि ||
No comments:
Post a Comment