सपने में बदरा
सपने में आया था बदरा ,वो तो मेरा है दोस्त ,
खिड़की को खटकाया उसने ,बोला ,"जल्दी बाहर आ ,
गगन में छाया हूँ मैं तो ,पवन के संग -संग डोल रहा ,
आ तू भी आजा सखि मेरी ,खेल ये कैसा खेल रहा "??
"रिमझिम बरखा भेजूँगा ,तुझे भिगो ही जाऊँगा ,
तेरे संग में ही सखि मेरी ,धरा पे बरखा बरसाऊँगा "||
"बरखा में जब धरा भीगेगी ,हरियाली छा जाएगी ,
हरियाली की उस चूनर को ,ओढ़ धरा मुस्काएगी ,
फसलों की लहर चलेगी ,और फूलों का हार पहन ,
धरा अपनी इतराएगी ,धरा अपनी इतराएगी "||
No comments:
Post a Comment