सपने में चाँद
सपने में आया था चाँद ,वो तो मेरा है दोस्त ,
खिड़की पे आहट हुई ,उसने पुकारा मुझे ||
"उठ के तू आजा सखि ,देख तो जरा ,
कितना सुंदर नजारा है ? मैं भी गगन से उतरा ,
देख तो जरा ,कितनी चंदनिया है ?
आजा ! तू आजा सखि ,मेरी चाँदनी में तू नहा ||"
खिली हुई चाँदनी है ,तू भी चमक जाएगी ,"
सुनकर मैं उठी ,खिड़की से बाहर फैली थी चाँदनी ,
चंद्रमा गगन में चमकते हुए ,मुस्कुरा रहा था ,
मेरे सपने को ,सच कर रहा था ||
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