रूह
रत्नाकर के द्वार जब , हम पहुँचे दोस्तों ,
लहरें उसकी उछलती हुईं , तब आईं दोस्तों ,
पकड़कर हाथ हमारा ले चलीं , सागर के घर ,
और दोस्तों हम तो पानी से हुए , तर - बतर ||
लहरों का वो सुरीला संगीत ,
वो खिलखिलाते गीत उनके , प्यार में डूबे ,
सागर के भेजे संदेस ने , दिल के फूल खिलाए ,
उन्हीं ने हमें जीने के , अर्थ सभी समझाए ||
लहरों के साथ खेलकर , जो वक्त बीता ,
वही तो दे गया हमें खुशियाँ , पाने का तरीका ,
वो खुशियाँ जो जीवन में , मुस्कान ले आईं ,
वो खुशियाँ जो हमें , जीना सिखा गईं ||
सागर और उसकी लहरें , हमारे दोस्त हैं ,
उनके मीठे गीत ही तो , होठों की मुस्कान हैं ,
उनका संगीत तो हमारी , रूह में उतर गया है ,
रूह में उतर गया है ||