Sunday, August 31, 2025

ROOH ( RATNAAKAR )

 

                              रूह 

 

रत्नाकर के द्वार जब , हम पहुँचे दोस्तों ,

लहरें उसकी उछलती हुईं  , तब आईं  दोस्तों ,

पकड़कर हाथ हमारा ले चलीं , सागर के घर ,

और दोस्तों हम तो पानी से हुए , तर - बतर   ||  

 

लहरों का वो सुरीला संगीत , 

वो खिलखिलाते गीत उनके , प्यार में डूबे ,

सागर के भेजे संदेस ने , दिल के फूल खिलाए ,

उन्हीं ने हमें जीने के , अर्थ  सभी समझाए  || 

 

लहरों के साथ खेलकर , जो वक्त बीता ,

वही तो दे गया हमें खुशियाँ , पाने का तरीका ,

वो खुशियाँ जो जीवन में , मुस्कान ले आईं ,

वो खुशियाँ जो हमें , जीना सिखा गईं   || 

 

सागर और उसकी लहरें , हमारे दोस्त हैं  ,

उनके मीठे गीत ही तो , होठों की मुस्कान हैं ,

उनका संगीत तो हमारी , रूह में  उतर गया है ,

रूह में उतर गया है  || 

 

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