खोल दो गाँठें
रोक दो मन को ,किसी भी जिद में पड़ने को ,
रोक दो मन को ,कोई भी गाँठ मढ़ने को ,
गाँठें ये लग जाएँगी ,रिश्तों में ही बंधु ,
जिद नहीं होगी ,तो गाँठें भी नहीं होंगी ||
खोल दो गर ,गाँठ कोई ऐसी जो पड़ जाए ,
रिश्ते सभी सुलझेंगे ,गाँठों के यूँ खुलने से ,
जो बढ़ी हैं उलझनें ,गाँठों के पड़ने से ,
जिंदगी की उलझनें ,सुलझ जाएँगी आसानी से ||
तो क्या फैसला है आपका ,सोच लो बंधु ?
क्या चाहिए आपको ,गाँठें या सुलझनें ?
मत सोचो ज्यादा तुम ,अभी कुछ और ,
आ जाओ मेरे पाले में ,और खोल दो गाँठें ||
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