संचय
संचय करि - करि जुग भया ,ना बना खजांची कोय ,
अपने जोग जो संचय करे ,तो काफी संचय होय ||
सारा धन ना जोड़िए ,खर्चा भी कछु कर लेय ,
मन को मार जो धन जुड़ा ,तो फायदा काहू का होय ||
मन का खाय और पहन के ,जोड़ लेय तू संतोष ,
मन को मारा तो क्या ? पाएगा तू संतोष ||
जीवन एक बार मिले ,बार -बार नहीं पाय ,
यह जीवन तो किसी भी ,हाट में नहीं बिकाय ||
जीवन में रस बहुत हैं ,पी ले तू भरपूर ,
नहीं पिये तो पछताएगा ,अंत समय भरपूर ||
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