बतियाय
हवा संग जल - कण उड़े ,वाष्प का रूप अपनाय ,
पहुँचे गगन के आँगना ,डेरा लिया जमाय ||
मिल - मिल के जल - कण बहुत ,जलद का रूप बनाय ,
डोलत रहे पवन संग , इधर - उधर बतियाय ||
आई दामिनी दमकती ,जलद को दिया चमकाय ,
देख दामिनी की चमक ,संग में लिया खिलाय ||
धरा ने देखा रूप उनका ,दिल में लिया बसाय ,
न्यौता उनको भेजकर ,घर में लिया बुलाय ||
आओ - आओ घर मेरे ,स्वीकारो मेरी चाय ,
साथ उसके हम तीनों ,लेंगे खूब बतियाय ||
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