Tuesday, June 4, 2024

BATIYAAY ( JALAD AA )

 

                                   बतियाय  


हवा संग जल - कण उड़े ,वाष्प का रूप अपनाय ,

पहुँचे गगन के आँगना ,डेरा लिया जमाय || 


मिल - मिल  के जल - कण बहुत ,जलद का रूप बनाय ,

डोलत रहे पवन संग , इधर - उधर बतियाय || 

 

आई दामिनी दमकती ,जलद को दिया चमकाय ,

देख दामिनी की चमक ,संग में लिया खिलाय || 

 

धरा ने देखा रूप उनका ,दिल में लिया बसाय ,

न्यौता उनको भेजकर ,घर में लिया बुलाय || 

 

आओ - आओ घर मेरे ,स्वीकारो मेरी चाय ,

साथ  उसके हम तीनों ,लेंगे खूब बतियाय || 

 

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