संतोष धन
बहुत बरस पहले ,संत कबीर दास जी ने कहा था ,
" जब आवे संतोष धन ,सब धन धूरि समान,"
ये शब्द कोई संत ही ,कह सकता है दोस्तों ,
बाकि दुनिया तो धन के पीछे ,दीवानी है दोस्तों ||
दोस्तों संतोष बहुत ही ,मूल्य वान भाव है ,
जो हर किसी के ,मन में नहीं होता ,
जो व्यक्ति मन को ,अपने वश में कर लेता है ,
वही संतोष का ,रसास्वादन कर सकता है ||
संतोष एक मानसिक स्थिति है दोस्तों ,
बिना डोर के उड़ने वाला मन ,
दुनिया के हर कोने में उड़ता फिरता है ,
हर वस्तु की चाह रखता है ,
सुख - सुविधाएँ ढूँढता है ||
इस मानसिक स्थिति को ,जो भी वश में कर लेता है ,
वही इस संतोष का हकदार होता है ,
यह संतोष ही एक शांति और ,
मुस्कानें प्रदान करता है दोस्तों ,क्योंकि ,
संतोष प्राप्ति के बाद ,
दुनिया का वैभव गौण हो जाता है ||
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