Tuesday, August 27, 2024

SANTOSH DHAN ( KSHANIKAA )

 

                         संतोष धन   


बहुत बरस पहले ,संत कबीर दास जी ने कहा था ,

" जब आवे संतोष धन ,सब धन धूरि समान,"

ये शब्द कोई संत ही ,कह सकता है दोस्तों ,

बाकि दुनिया तो धन के पीछे ,दीवानी है दोस्तों || 

 

दोस्तों संतोष बहुत ही ,मूल्य वान भाव है ,

जो हर किसी के ,मन में नहीं होता ,

जो व्यक्ति मन को ,अपने वश में कर लेता है ,

वही संतोष का ,रसास्वादन कर सकता है || 

 

संतोष एक मानसिक स्थिति है दोस्तों ,

बिना डोर के उड़ने वाला मन ,

दुनिया के हर कोने में उड़ता फिरता है ,

हर वस्तु की चाह रखता है ,

सुख - सुविधाएँ  ढूँढता है || 


इस मानसिक स्थिति को ,जो भी वश में कर लेता है ,

वही इस संतोष का हकदार होता है ,

यह संतोष ही एक शांति और ,

मुस्कानें प्रदान करता है दोस्तों ,क्योंकि ,

संतोष प्राप्ति के बाद ,

दुनिया का वैभव गौण हो जाता है || 



No comments:

Post a Comment