बालिका वधु
जैसे - तैसे समय आगे बढ़ा ,
छोटी बच्ची भी बड़ी होने लगी ,
मगर माँ का क्या ? वह तो ,
थकी -हारी और टूटी - टूटी थी ||
बीमार रहने लगी ,उदासी में डूबी -डूबी ,
हँसी खो गई थी ,सेहत उखड़ गई थी ,
मगर फिर भी ,जिम्मेदारियों की गली ,
लंबी हो गई थी ,कठिन हो गई थी ||
पति खुद में ही मस्त था ,
परिवार वाले भी ,खुद में ही मस्त थे ,
परेशानी में डूबी थी बस ,बस वही ,
जो थकावट और बीमारियों से त्रस्त थी ||
क्या करे ? क्या ना करे ?
कुछ नहीं समझ पा रही थी वो ,
जीवन की परेशानियों से बिल्कुल भी ,
नहीं लड़ पा रही थी वो ||