दलदल
बरखा बरसी ,जल - थल हुआ संसार ,
चमक दामिनी ले कर आई ,साथ में गर्जनार ,
उस जल से भरे ,ताल - तलैया ,
नदिया की मोटी हो गई धार ||
कल - कल करती दौड़ी नदिया ,
साथ की माटी बनी उपजाऊ ,
हरे -भरे हैं खेत हरियाए ,
अन्नदाता के भर गए भंडार ||
नदिया रही दौड़ती -दौड़ती ,
साथ लिए माटी का भंडार ,
पर मानव ने दिया नदी को ,
सारी गंदगी का भंडार ||
जब हो गया पानी गंदा ,
नदिया हो गई जल - विहीन ,
धीरे - धीरे सूखी नदिया ,
माटी की दलदल के साथ ||
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