बालिका वधु
इसी तरह चार बरस बीत चले ,
उसकी बेटी भी बड़ी हो चली ,
तब वह माँ का कर्त्तव्य निभाते हुए ,
बेटी का हाथ पकड़ ,विद्यालय की ओर बढ़ चली ||
जिनके घरों में खाना बनाती थी वो ,
उनमें से ही कुछ ने उसे समझाया ,
मदद की उसकी और उसकी बेटी को ,
विद्यालय में दाखिला दिलवाया ||
बेटी भी समझने लगी थी अब ,
माँ को परेशानियों की हालत में देखा था ,
विद्यालय में ध्यान लगा कर पढ़ने लगी ,
क्योंकि मेहनत ही ,उसके भाग्य का लेखा था ||
बालिका वधु को अब ये ,अहसास हो रहा था ,
माता - पिता की ,सोच के कारण ही तो उसका ,
जीवन इतनी कठिनाईयों से भरा था ,
काश उसके माता - पिता ने उसे ,
बालिका वधु ना बनाकर उसे ,
पढ़ाया - लिखाया होता ,पढ़ाया - लिखाया होता ||
समाप्त ,कृपया अपनी राय जरूर दें ||
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