बालिका वधु
दिन -रात की भागम - भाग ,
काम का बढ़ता बोझ उसे ,
थकावट के साथ -साथ ,
कमजोरी भी देता जा रहा था ||
इसी अवस्था में महीना बीतते - बीतते ,
जब उसके हाथ में पगार आई ,
तो बंधुओं उसकी आँखों में ,
अश्रु के साथ - साथ चमक आई ||
उसने अपना और अपनी बेटी का ,
खान - पान कुछ दुरुस्त किया ,
शरीर ने भी उसके इस बदलाव को ,
सदयता से स्वीकार किया ||
कार्यों में जुटी वह पस्त नारी ,
बढ़ती रही अपनी कठिन राह पर ,
जीवन भी ले चला उसको ,उन्नति की राह पर ||
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