जन्म गाँव का
बनी जब दुनिया ,बने सागर -सागर ,
जीवन उपजा जिनमें ,मगर धीरे -धीरे ,
उपजे तब पेड़ धरा पर ,सभी धीरे -धीरे ,
और बने घने से ,जंगल -जंगल ,
बहुत लंबे से समय के बाद ,
बहुत से जीवों की रचना के बाद ,बना मानव |
मिला उसे मस्तिष्क दोस्तों ,सोचने की शक्ति ,
और मुस्कुराहट का वरदान ,
जंगली जानवर से डरा मानव ,
जंगल की आग से डरा मानव |
मगर एक डर -आग को उसने ,
क़ाबू कर ,अपना हथियार बनाया ,
और आग से जंगली जानवरों को डराया ,
एकत्रित हो समाज बनाया |
नदिया के पास गाँव बसाए ,
साधारण से घर बनाए ,
जो उसे धूप और वर्षा से बचाते ,
खेतों में था अन्न उगाया ,
समाज में रहने के नियम और कानून बनाए ,
जो अधिक सोचता ,वही कानून बनाता ,
जो शक्तिशाली था ,वही मुखिया था |
पहले गाँव छोटे थे ,फिर बड़े बने ,
जीवन था सादा ,खान -पान सादा ,
नियम -कानून सादे ,यही था ग्रामीण जीवन ,
आज के दिन से बहुत अलग ,बिल्कुल अलग |
No comments:
Post a Comment