उड़ान है नहीं
उम्र बीत गई दोस्तों ,घरोंदा बनाने में ,
बनाने में और ,सपनों से सजाने में ,
भूल गए हम तो ,कि पंख भी मिले हैं ,
उड़ानें भी भरी जा सकती हैं ,आसमान में |
बच्चों के घरोंदे ,बन गए जब ,
रह गए ,अकेले हम जब ,
तब पंख याद आए ,उड़ानें याद आईं ,
मगर तब ना थी ताकत ,उड़ानें भर ना पाईं |
घरोंदा भी हम तो ,नहीं संभाल पाए ,
उड़ानें तो दोस्तों ,हम शुरु ही ना कर पाए ,
खाली हैं हाथ अपने ,बस कुछ हैं सपने ,
और सपनों की हैं ,बची हुई यादें |
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