आनंद
हमारी धरा ,हमारी प्रकृति ,देती है हमें सब कुछ ,
कितने ही मौसम ,कितनी ही ऋतुएँ ,हैं आती -जाती ?
हम आनंद लेते हैं ,हर मौसम का ,हर ऋतु का ||
हर मौसम शुरु होता है , तो बदल जाता है ,
हमारा खानपान ,हमारी वेशभूषा ,हमारा समय ,
और हम आनंद लेते हैं ,हर मौसम का ,हर ऋतु का ||
जो संसार में आता है ,वह वापिस जाता है दुनिया से ,
इसी तरह ,जो मौसम शुरु होता है ,
वह ख़त्म भी होता है ,यानि मौसम का ,
अंत भी होता है ,और अपने पीछे आनंद छोड़ जाता है ||
अंत का भी अंत होता है ,
अनंत कुछ भी नहीं है ,यहाँ इस दुनिया में ,
देखो ना पूरे साल में ,पतझड़ भी आता है ,
समझो जरा ,पूरे साल बसंत नहीं होता ,
और हम आनंद लेते हैं ,हर मौसम का ,हर ऋतु का ||
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