जूते की आत्मकथा
यह आत्मकथा मेरे नाती अंश अरोरा
( कक्षा - 6 ) की लिखी हुई है | कृपया
पढ़कर अपनी राय दें और अंश को
आशीष दें ||
सभी लोग मुझे अपने पैरों में पहनते हैं | मैं
कारखानों में बनाया जाता हूँ | मैं लोगों के
पैरों की रक्षा करता हूँ | बताओ तो जरा --
-- मैं कौन हूँ ?
आपने क्या जवाब दिया ? मैं एक जूता हूँ |
" हाँ जी ! मैं एक जूता हूँ "| सही जवाब ||
मेरा जन्म एक कारखाने में हुआ था | मैं
काले रंग के चमड़े से बना जूता हूँ | मेरे
बहन - भाई अलग - अलग रंग और सामान
से बने हैं | लाल ,पीला ,सफ़ेद आदि रंग और
कपड़े ,प्लास्टिक ,धातु आदि से मेरे भाई -
बहन बने हैं |
एक दिन एक आदमी ने मुझे दुकान दार
से खरीदा | वह मुझे प्रतिदिन पहन कर
ऑफिस जाता था | रोज मुझे पॉलिश करके
चमकाता था | जिससे मैं अच्छा दिखाई दूँ |
एक दिन उस आदमी को ठोकर
लग गई ,जिससे मुझे चोट लग गई ,और मैं
फट गया | उस आदमी ने मुझे अलमारी में
रख दिया | उसके बाद वह आदमी मुझे भूल
गया | कुछ दिन बाद उसने मुझे देखा और
उसने मुझे कूड़े दान में डाल दिया ||
मुझे बहुत दुःख हुआ | पर फिर
भी मैंने अपना हौसला बटोरा | अब मैंने
सोचा कि जल्दी ही मैं एक नया जूता बनकर
किसी और की मदद करूँगा और उसके
पैरों की रक्षा करूँगा ||
आप सबने मेरी आत्मकथा सुनी | आप सब
का बहुत - बहुत धन्यवाद ||
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