ख्वाब सा
निगाहें थीं द्वार पर ,
इंतज़ार था ,
दिल किसी के लिए ,
बेकरार था |
अचानक वो आए ,
पल भर देखा मुस्कुराए ,
पलकें झुकीं पर ,
लबों की पंखुड़ियाँ खुल गईं ,
इज़हार के लिए ,
इकरार के लिए ,
इंतज़ार था |
मगर ये सोच था ,
शब्द ना खिले ,होंठ ना हिले ,
कंपकंपाते हाथ उठे और जुड़ गए ,
एक शब्द से अलग ,
सारे शब्द हो गए ,
बेक़रार था |
पलकें फिर उठीं ,
नजरें उनसे मिल गईं ,
होंठ जो कह ना पाए ,
सारी बात कह गईं ,
ना ही बोले वो ,
ना ही कुछ सुना ,
केवल पलकें उठीं ,
एक ख्वाब सा बन गया ,
इंतज़ार था ,
बेक़रार था |
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