जुनूँ
जब कभी तेरा नाम लेते हैं ,
जैसे हम इम्तहान देते हैं ,
मेरी बर्बादियों के अफ़साने ,
मेरे यारों के नाम लेते हैं |
एक ही तो जुल्म है अपना ,
हम मुहब्बत से काम लेते हैं ,
मगर उनकी जफ़ा तो देखो ,
बे - मुरव्वत का नाम देते हैं |
हर कदम पर गिरे मगर सीखा ,
कैसे गिरतों को थाम लेते हैं ?
हम भटक कर जुनूँ की राहों में ,
अपने से इंतकाम लेते हैं |
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