थी मैं
सुबह बहुत हसीन थी ,
शाम भी रंगीन थी ,
चाँदनी रात थी ,
पर मैं गमगीन थी |
रंग था बिखरा हुआ ,
हुस्न था निखरा हुआ ,
सारा समां था महका हुआ ,
पर मैं उदासीन थी |
हर तरफ था कहकहा ,
हर तरफ एक सिलसिला ,
पर एक बदली ग़म की ,
दिल में मेरे आसीन थी |
रंगों से दूर थी मैं ,
खुश्बुओं से दूर थी मैं ,
जिसका खुशनसीबी नाम है ,
उस शय से मैं दूर थी |
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