Sunday, January 17, 2021

DHARA HILII ( SMALL POEM )

 धरा हिली

 

धरा हिली ,गिरीं इमारतें ,

मचा हाहाकार ,चीखो पुकार , 

दर्द भरी कराहटों से , गूँजा वातावरण ,

प्रकृति का यह विनाशकारी रूप ,

देखा सभी ने ,मगर ,

महसूस किया कुछ ने ,

भरे -पूरे परिवार ,समृद्ध संसार ,

दब गए मलबे के ढेर में ,

यह थी किस्मत जो ,

लिखी विधाता ने ,

कुछ जीवन समाप्त हुए ,

कुछ तड़प रहे दबे हुए ,

कोई दे सहारा ,

बढ़ाए हाथ ,उठाए उन्हें ,

इस इंतजार में ,

मौत से जूझते हुए ,दर्द से कराहते ,

जीवन लिए जो ऊपर थे मलबे के ,

जरूरतों को तलाशते ,

रोटी के टुकड़े को ,पानी की बूँद को ,

सिर पर एक छत को ,

बदन पर एक कपड़े को ,

पाने की लालसा में ,खड़े हैं इंतजार में | 

 

 


No comments:

Post a Comment