प्रवासी भारतीय
क्यों चले गए परदेस ,छोड़कर देस ?
आज ये देस बुलाता है ,
प्यार की धुन ये सुनाता है |
माटी ने दिया संदेस ,उड़ - उड़कर ,
वो भी तो तुमको बुलाती है ,
प्यार की बीन बजाती है |
हवाएँ बहती रहती हैं ,कुछ कह-कहकर,
कहती हैं कहाँ बसे हो तुम ?
प्यार से तुम्हें बुलातीं हैं |
बदरा भी छा -छा कर ,गरज -गरज कर ,
दामिनी का दामन थामते हैं ,
रिमझिम से तुम्हें बुलाते हैं |
पंछी का गान अलग सा है ,प्रेम भरा है ,
वो तो मिलजुल कर गाते हैं ,
आओ जी तुम्हें बुलाते हैं |
नदियाँ ,झरने गाते ,कल -कल ,छल -छल ,
पीने को शीतल जल लाते हैं ,
आओ जी तुम्हें बुलाते हैं |
सुनो तुम सबकी ये बानी ,
हृदय की धड़कन की बानी ,
ये सब दिल को धड़काते हैं ,
धड़क कर तुम्हें बुलाते हैं |
No comments:
Post a Comment