सफर नदी का
सफर कट रहा है जिंदगी का ,
प्यार से दुलार से ,लगातार से ,
चलते - चलते नदिया किनार से ,
बहती हुई नदिया की धार से |
धार थी उदास सी ,
कुछ गुमसुम सी ,कुछ चुपचाप सी ,
पूछा जो उससे तो ,
नम आँखों से देखती सी बोली ,
ये उदासी तो अब ,
कभी ख़त्म ना होगी |
क्यूँ ? कोई समस्या है तो बोलो ,
दिल का राज़ खोलो ,
सहमी सी आवाज़ में वो बोली ,
मेरा पानी तो दूषित हो गया है ,
शहर का गंद मुझ में घुल गया है ,
पीने योग्य नहीं रह गया है |
कोई लाए गर संजीवनी ,
तो साफ हो जाए ये गंदगी ,
जी उठे मेरी जिंदगी ,
बहने लगूँ सुगंधित होकर ,
नीर पिएँ सभी खुश होकर |
तभी तो कट जाएगा सफर ,
साथ सभी के चलते - चलते ,
तभी तो मंजिल पर पहुँचुँगी मैं ,
राहों को पार करते - करते ,
साथियों के साथ ही तो सफर ,
सुहाना हो जाता है चलते - चलते |
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