डायरी मेरी सखि ( 06 /04 /2021 )
कलम है मेरी चलती जाती ,मेरी बात बताती जाती ,
तू भी सखि मुस्कान के साथ,अपनी बात बतादे आज |
चलते हैं समंदर बीच पे दोनों ,कभी समां प्यारा था ,
बयार चल रही थी ,समंदर में लहरें उछल रहीं थीं |
काफी लोग थे वहाँ ,कुछ हमारे दाएँ ,कुछ बाएँ ,
लहर आई उछल कर ,भिगोया मुझको मचलकर |
ना दाएँ वाले भीगे ,ना बाएँ वाले भीगे ,
भीगी बस मैं ही ,है ना अचरज की बात सखि |
आज भी सोचकर ,दिल खुश होता सखि ,
समंदर भी मुझसे ,बहुत प्यार करता सखि |
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