एक आस
हर पल गुजरता जाता है ,
एक आस दामन में लिए ,मैं जीती जाती हूँ ,
ना पल कोई लौटा ,ना आस हुई पूरी ,
ये दिनबिट चले हैं ,जिंदगी पूरी हुई जाती है |
मौसम के बदलने पर ,आस का धागा टूटता है ,
जुड़ जाता है ,वापस मगर ,
उसमें एक गाँठ सी पड़ जाती है ,
ना फूल ,ना कोई मोती ,
कुछ नहीं पिर सकता ,
गाँठ पर ही रुक जाता है ,
कैसे हार बनाऊँ प्रियतम ?
कैसे तुम्हें पहनाऊँ प्रियतम ?
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