डायरी मेरी सखि (07 /04 /2021 )
साल दर साल गुजरता जाता है ,समय बीतता जाता है ,
मौसम भी सभी बदलते हैं,हम ही एक मोड़ पे रुके रहते हैं |
कब मुड़ेंगे हम ये जानें ना ,राहों को हम पहचानें ना ,
कौन बताएगा सही राह ?हम हैं सब से अनजाने |
समय का बहता दरिया है ,साथ में बहते जाना है ,
रुकना नहीं है संभव सखि ,साथ में बहते जाना है |
अगर रुके तो वक्त ,चला जाएगा आगे सखि ,
बाँध नहीं सकता कोई ,वक्त की उड़ती पाँखें सखि |
चलते - उड़ते जीवन अपना ,यूँ ही बीतता जाएगा ,
कुछ तेरी और कुछ मेरी ,आपबीती सुन पाएगा |
लिखी ,सुनी सब बातें हैं ,तू याद सदा रखना मुझको ,
आगे भी जब समय मिलेगा ,मिलने आऊँगी तुझको |
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