Friday, June 3, 2022

AASHAAEN ( JIVAN )

 

                        आशाएँ 

 

उम्मीदें ,आशाएँ ,छिप  गईं हैं आज तक ,

जिम्मेदारियों के पीछे ही | 

 

जिम्मेदारियाँ जो ,एक बार उठाईं तो ,

भारी होती जा रही हैं ,मजबूत काँधों पर भी | 

 

काँधे तो मजबूत हैं ,मस्तिष्क के विचारों का ,

भार उठाने के काबिल नहीं ,

दुनिया भर के विचार ,मस्तिष्क में हमेशा तिरते रहे | 

 

हरसोच ,हर विचार ,आता रहता मस्तिष्क में ,

अँखियों के झरोखों से ,जो दुनिया दिखाई देती है ,

उसी प्रवेश द्वार से आती रही ,

विचारों की धारा प्रवेश करती रही | 

 

विचारों की धारा बहती जा रही ,

अंदर ही अंदर ,सोच का समंदर ,

बढ़ता जा रहा था ,

लहरों के उतार -चढ़ाव ,

मन को विचलित  कर जाते ,

उद्वेलित हुए मन को ,

उम्मीदें , आशाएँ फिर से प्रफुल्लित कर जाती हैं | 

 

 

 

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