आशाएँ
उम्मीदें ,आशाएँ ,छिप गईं हैं आज तक ,
जिम्मेदारियों के पीछे ही |
जिम्मेदारियाँ जो ,एक बार उठाईं तो ,
भारी होती जा रही हैं ,मजबूत काँधों पर भी |
काँधे तो मजबूत हैं ,मस्तिष्क के विचारों का ,
भार उठाने के काबिल नहीं ,
दुनिया भर के विचार ,मस्तिष्क में हमेशा तिरते रहे |
हरसोच ,हर विचार ,आता रहता मस्तिष्क में ,
अँखियों के झरोखों से ,जो दुनिया दिखाई देती है ,
उसी प्रवेश द्वार से आती रही ,
विचारों की धारा प्रवेश करती रही |
विचारों की धारा बहती जा रही ,
अंदर ही अंदर ,सोच का समंदर ,
बढ़ता जा रहा था ,
लहरों के उतार -चढ़ाव ,
मन को विचलित कर जाते ,
उद्वेलित हुए मन को ,
उम्मीदें , आशाएँ फिर से प्रफुल्लित कर जाती हैं |
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