दुपहरिया
उगा जो सूरज दुनिया बोली ,
आज का दिन तो शुरू हुआ ,
ढला जो सूरज तो वह बोली ,
आज का दिन तो ख़त्म हुआ |
क्या ऐसा होता है बंधु ?
दिन क्या ऐसे ही उगता ,ढलता ?
सोच के देखो , दिल में ही ,
दिन क्या शुरू और अस्त नहीं होता ?
जब हम खुश होते हैं बंधु ,
दिन क्या शुरू नहीं होता ?
और हमारे दुःख के कारण ,
दिन क्या अस्त नहीं होता ?
फिर हम अपने दिन को बंधु ,
क्यों ना ,शुरू करें मुस्कानों से ?
बाँटें मुस्कानें सब ओर ,
भरी रहे दुपहरिया सब ओर |
ठंडी बयार बहा दें हम ,
मुस्कानें फैला दें हम ,
मुस्कानें सुकून की फैलाते - फैलाते ,
दिन के अस्त होते - होते ,
सपनों के पंख सभी को दें हम |
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