Wednesday, June 15, 2022

DUPAHRIYAA ( JIVAN )

 

 

                  दुपहरिया 

 

उगा जो सूरज दुनिया बोली ,

आज का दिन तो शुरू हुआ ,

ढला जो सूरज तो वह बोली ,

आज का दिन तो ख़त्म हुआ | 

 

क्या ऐसा होता है बंधु ? 

दिन क्या ऐसे ही उगता ,ढलता ? 

सोच के देखो , दिल में ही ,

दिन क्या शुरू और अस्त नहीं होता ? 


जब हम खुश होते हैं बंधु ,

दिन क्या शुरू नहीं होता ? 

और हमारे दुःख के कारण ,

दिन क्या अस्त नहीं होता ? 


फिर हम अपने दिन को बंधु ,

क्यों ना ,शुरू करें मुस्कानों से ? 

बाँटें मुस्कानें सब ओर ,

भरी रहे दुपहरिया सब ओर | 


ठंडी बयार बहा दें हम ,

मुस्कानें फैला दें हम ,

मुस्कानें सुकून की फैलाते - फैलाते ,

दिन के अस्त होते - होते ,

सपनों के पंख सभी को दें हम | 


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