यादें स्कूल की
यादें कभी भूलती नहीं ,आती ही रहती हैं ,
कभी भी समय नहीं देखतीं ,नींद भी खुलवातीं हैं |
कभी बचपन याद आता है ,तो स्कूल पहुँच जाते हैं ,
फिर बस्ता खुल जाता है ,किताबें निकल आतीं हैं |
अभी भी याद हैं ,बचपन में पढ़ी कहानियाँ ,
गुनगुन करके ,कभी कविताएँ सुनाई जाती हैं |
शरारतें तो सारी की सारी ,जैसे कल ही करीं हों हमने ,
उन शरारतों को करके ,मुस्कानें उभर आती हैं |
गुरुजनों को याद करके ,शीश श्रृद्धा झुक जाता है ,
उनके आशीर्वादों में तो हमें ,दुनिया ही मिल जाती है |
स्कूल का प्रांगण ,जहाँ झूले थे ,फिसल पट्टी थीं ,
हमें तो मानो दोस्तों ,फिर से यादें वहीं पहुँचाती हैं |
आओ देखो दोस्तों ,तुम हमारे स्कूल को ,
यादें उस " नव भारती विद्यापीठ " ,का नाम लिख जाती हैं |
No comments:
Post a Comment