धुन बजाए
समंदर - समंदर यहाँ से वहाँ तक ,
कोई ओर ना छोर ,जिसका जहाँ तक ,
कोई हद नहीं है उसकी ,वो कहाँ तक ?
नज़रों की सीमा के पार है वो ,
नीले आसमां के भी पार है वो ,
खारा सा पानी लिए ,मगर प्यार है वो |
अनजानी दुनिया को खुद में समाए ,
जीवों के जीवन को ,आँचल में बसाए ,
जीवन दाता ही तो है ,जीवन का आधार है वो |
अनगिनत जीव पलते हैं अंदर ,
रंगों का ही अंदर है फैला समंदर ,
लहरों की बीना पे , मन मोहक धुन बजाए |
रत्नों को अपने खजाने में समेटा ,
अपने ही आँचल में ,उनको लपेटा ,
तभी तो समंदर ,रत्नाकर कहलाए |
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