शब्दों के पंख
होते गर शब्दों के पंख ,हर किताब उड़ती रहती ,
हर बच्चा उछल-उछल कर ,पकड़ किताब बस्ते में रखता |
फर -फर करते शब्द किताब में ,जगह बदलते रहते ,
मगर उन शब्दों को हम ,क्या कहते ? क्या करते ?
मेरी लेखनी से निकले शब्दों की ,मैं क्या लिखती कविता ?
आप ही बंधु उन शब्दों को ,पकड़ के लिखते कविता |
हर किसी की कविता का ,अर्थ निकलता अलग ,
कोई उनसे दोहे लिखता ,कोई उनसे लिखता ग़ज़ल |
कोई राखी को खीरा ,और कोई खीरा को राखी पढ़ता ,
कोई कान को नका पढ़े ,तो कोई नाक को कना पढ़ता |
सब कुछ उल्टा -पुल्टा होता ,जो होते शब्दों के पंख ,
इससे तो बेपंख ही अच्छे ,मेरे छोटे और बड़े शब्द |
No comments:
Post a Comment