Thursday, June 9, 2022

SHABDON KE PANKH ( JIVAN )

  

                     शब्दों के पंख 

 

होते गर शब्दों के पंख ,हर किताब उड़ती रहती ,

हर बच्चा उछल-उछल कर ,पकड़ किताब बस्ते में रखता | 


फर -फर करते शब्द किताब में ,जगह बदलते रहते ,

मगर उन शब्दों को हम ,क्या कहते ? क्या करते ? 


मेरी लेखनी से निकले शब्दों की ,मैं क्या लिखती कविता ? 

आप ही बंधु उन शब्दों को ,पकड़ के लिखते कविता | 


हर किसी की कविता का ,अर्थ निकलता अलग ,

कोई उनसे दोहे लिखता ,कोई उनसे लिखता ग़ज़ल | 


कोई राखी को खीरा ,और कोई खीरा को राखी पढ़ता ,

कोई कान को नका पढ़े ,तो कोई नाक को कना पढ़ता | 


सब कुछ उल्टा -पुल्टा होता ,जो होते शब्दों के पंख ,

इससे तो बेपंख ही अच्छे ,मेरे छोटे और बड़े शब्द |  


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