तन - मन
रचना हुई शरीर की ,बनी कोठरी छोटी ,
उसी कोठरी में था मन ,मुट्ठी भर की थी कनी ,
शरीर बड़ा दिखाई दिया ,मन सोचे मैं छोटा ,
मगर शरीर कहाँ जाय रे ,मन उड़ जाय ज्यूँ तोता |
तन तो रुक जाय एक ठौर ,मन का कोई नहीं है ठौर ,
मन तो डोले इत -उत बंदे ,हर सीमा को पार करे ,
जीवन की सीमा के पार भी ,मन तो बंदे विचर करे |
इंसान ने नाम दिए तीन लोक ,स्वर्ग ,पृथ्वी ,पाताल लोक ,
मन तो उड़े ,चाहे जहाँ चला जाए ,
उसके लिए तो क्या ----
स्वर्ग लोक ,क्या पृथ्वी लोक और पाताल लोक |
मन के लिए तो बीता समय ,आने वाला समय ,
नहीं है सीमा बद्ध ,
बरसों पहले समय में मन पहुँचा ,
करे भविष्य भी विचार ,
मगर तन तो आज में ही रुका है ,
मन के चलने पर लगे ,हमने कर ली सैर |
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