Sunday, June 26, 2022

TAN - MAN ( JIVAN )

 

                        तन - मन 

 

रचना हुई शरीर की ,बनी कोठरी छोटी ,

उसी कोठरी में था मन ,मुट्ठी भर की थी कनी ,

शरीर बड़ा दिखाई दिया ,मन सोचे मैं छोटा ,

मगर शरीर कहाँ जाय रे ,मन उड़ जाय ज्यूँ तोता | 

 

तन तो रुक जाय एक ठौर ,मन का कोई नहीं है ठौर ,

मन तो डोले इत -उत बंदे ,हर सीमा को पार करे ,

जीवन की सीमा के पार भी ,मन तो बंदे विचर करे | 

 

इंसान ने नाम दिए तीन लोक ,स्वर्ग ,पृथ्वी ,पाताल लोक ,

मन तो उड़े ,चाहे जहाँ चला जाए ,

उसके लिए तो क्या ----

स्वर्ग लोक ,क्या पृथ्वी लोक और पाताल लोक | 

 

मन के लिए तो बीता समय ,आने वाला समय ,

नहीं है सीमा बद्ध ,

बरसों पहले समय में मन पहुँचा ,

करे भविष्य  भी विचार ,

मगर तन तो आज में ही रुका है ,

मन के चलने पर लगे ,हमने कर ली सैर | 

 

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