गुनते हैं पुस्तक
पुस्तक से जुड़ता नाता ,बचपन ही से बंधु ,
पहले थी अक्षर माला ,धीरे से आईं कहानियाँ ,
धीरे -धीरे पढ़ना आया ,और हमें भाईं कहानियाँ |
हर पुस्तक का रूप अलग ,हर पुस्तक का रंग अलग ,
कोई कहानी वाली है ,तो कोई कविता निराली है ,
अलग पुस्तक का मज़ा अलग ,हर कोई डूबा उसमें आली है |
अपनी पसंद की पुस्तक पाकर ,हर कोई खुश हो जाता है ,
उसी में खो कर के बंधु ,वह अपना समय बिताता है ,
पूरी पढ़ लेने पर वह ,अनुभव सबको बताता है ,
गर्व करते हुए ही बंधु ,वह बोल -बोल इतराता है |
हम भी पुस्तक लेते हुए ,अपनी पसंद को चुनते हैं ,
खाली समय के इंतजार में ,एक - एक पल को बुनते हैं ,
पढ़ लेते हैं जब वह पुस्तक ,दिल ही दिल में सब गुनते हैं |
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