ताजपोशी
याद आते हैं मुझे ,स्कूल के वो दिन ,
काँधे पे बस्ता टाँग के ,चलते थे सीना तान के |
खुशियाँ झलकती थीं चेहरे से ,मानो जीती कोई जंग ,
खुशियों में डूबे रहते थे ,हम थे मलंग ,हम थे मलंग |
दोस्तों की टोलियाँ ,जब लगातीं कहकहे ,
लगता था हमको ऐसा ,कुछ चुटकुले हमने कहे |
रात और दिन का ,हमको फर्क नहीं था भाता ,
हमको तो हर समय ही ,एक जैसा समझ था आता |
पढ़ना ,लिखना और खेलना ,यही था हमारा काम ,
आज के समय में तो दोस्तों ,आराम है हराम |
काश वो दिन ,प्यारे दिन ,लौटा दे कोई ,
लगेगा हमें जैसे ताजपोशी ,कर गया है कोई |
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