Thursday, December 1, 2022

ANDAR ( CHANDRAMA )

 

                अंदर  (चंद्रमा )


रात को जब चाँद चमका ,

झाँका  खिड़की से अंदर ,

हमने जब बुलाया मुस्का के ,

आया वो तब खिड़की से अंदर | 


हम दोनों की शुरु हुईं जब बातें ,

हमने कीं वो सारी बातें ,

इतने दिन से जो बातें ,

दबीं थीं दिल के अंदर | 


कहा चाँद ने हमसे तब ,

कई बार देखा करता था ,

मैं तुमको मेरी सखि ,

पर जगा ना पाया मैं तुमको ,

डूबीं थीं तुम निंदिया के अंदर | 


मैं बोली तब मेरे दोस्त ,

रोज़ झाँकती थी मैं खिड़की से ,

रोज़ ढूँढती थी सखा को अपने ,

मगर ना जाने कहाँ गुमे थे ?

कभी दिशा कुछ दूसरी होती ,

कभी शायद बदरा के अंदर | 


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