चौराहा जिंदगी का
शहरों में जो सड़कें बनती हैं ,
उनमें कई मोड़ ही मुड़ते हैं ,
कई मोड़ों के मिलने से ही ,चौराहे भी बन जाते हैं |
जीवन भी एक सड़क ही तो है ,
मोड़ों की यहाँ भरमार है ,
पर कहीं -कहीं इन मोड़ों में ,चौराहे ही बन जाते हैं |
कई बार परिस्थितियों की खातिर ,
हम सब खड़े वहाँ रह जाते हैं ,
जहाँ पर एक-दो नहीं दोस्तों,चार-पाँच रास्ते जाते हैं |
तब समझ नहीं आता है हमें ,
किस ओर और कहाँ हम जाएँ ?
किस मोड़ से मिलेगी मंजिल हमें ?सुकूँ कहाँ पा जाते हैं?
यदि गलत मोड़ आता है तो ,
बर्बाद वो तो कर जाएगा ,
नहीं पाएँगे मंजिल हम ,सुकूँ भी नहीं पा सकते हैं |
कैसा है चौराहा जिंदगी का ?
काश यहाँ लिखा होता ,
आराम कहाँ मिल सकता है ?सुकूँ कहाँ मिल सकता है ?
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