भोर
नींद में डूबे तो ,सपनों की दुनिया ,
जिसका कोई ओर ना छोर ,
मन - मयूर उसमें उड़े ,
खिलखिलाता हुआ चहुँ ओर |
अनजानी सी वह दुनिया ,
फैली है बिन डोर चहुँ ओर ,
अंतर्मन उड़ता जाता है ,
जैसे बँधी हो कोई अदृश्य डोर |
सपने खट्टे - मीठे मिलते ,
कुछ मन को याद हैं रहते ,
कुछ को भूल जाते हैं हम ,
कुछ को याद कर नाचे मन का मोर |
उस दुनिया में नई जगह हैं ,
कुछ जाने ,कुछ अनजाने चेहरे,
घूम - घूम कर ,देख -देख कर ,
आ जाती है सुंदर सी भोर |
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