दौड़ी जाती
चली है नदिया बलखाती ,संगीत सुनाती ,इठलाती ,
तेज धार का रूप लिए ,प्यार सभी से जतलाती |
सभी को प्यार से दे आवाज़ ,पास बुलाकर प्यार जताए ,
अपने जल से सभी को वह ,झर -झर कर भिगो ही जाती |
धरा तेज है नदिया की ,साथ नहीं हम चल सकते ,
दौड़ -दौड़ कर भी हम तो पीछे ,वो आगे ही दौड़ी जाती |
पकड़ नापाएँ उसको हम ,वो तो सरपट दौड़ लगाए ,
ऐसा हमें तो लगता है ,वो ओलिम्पिक में गोल्ड जिताती |
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