Tuesday, January 3, 2023

ANTARMAN ( GEET )

 

                    अंतर्मन 


वो खामोशियाँ ,अंतर्मन में जो बसीं ,

वो सरगोशियाँ ,अंतर्मन में जो बजीं | 


संघर्षों में जूझते ,अंतर्मन की आवाजें ,

कहती हैं इन्हीं में ,तो नई कलियाँ खिलीं | 


खामोशियों में ही ,तो कभी ग़म मिला ,

और कभी तो ,खुशियाँ ही खुशियाँ मिलीं | 


कभी हम किसी के ,बंधन में बंध गए ,

और कभी तो हमको पूरी आज़ादी मिली | 


कभी तो प्यार से ,हाथ अपना थामा किसी ने ,

और कभी तो उसी ,हाथ से झटकन मिली | 


काश अंतर्मन डूब जाता ,किसी के प्यार में ,

चाहे खामोश रहे ,चाहे सरगोशियाँ करे ,

वहाँ से ना आज़ाद होता ,हाथ थामे चलता ,

और कभी तो कहता ,आज मेरी दुनिया सजी | 

 

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