डोर प्यार की
बन गया कोई अपना ,अपने प्यारे व्यवहार से ,
अपने मीठे बोलों से ,बोलों के इज़हार से ||
नहीं खून का रिश्ता था ,ना सगा - संबंधी था ,
मगर दिल में प्यार था ,प्यार के इकरार से ||
उसी रिश्ते को दिल से ,दिल के प्यार से संभाला हमने ,
ढीला नहीं पड़ने दिया हमने ,प्यार की उस डोर को ||
आओ दोस्तों ,बाँध लें हम -तुम ,दिलों को जोड़ लें हम ,
प्यार की कच्ची सी नाजुक ,मगर पक्की डोर से ||
जीवन ऐसा ही है दोस्तों ,रिश्ता बनाना मुश्किल नहीं है ,
मगर उसे संभालने में ,वक्त लगता है ज्यादा ,
उस वक्त को बाँधा हमने ,प्यार की डोर से ,
भई ,प्यार की नाज़ुक डोर से ||
No comments:
Post a Comment