महफ़िल अनोखी
रत्नाकर का आया फोन ,आओ सखि मेरे अँगना ,
कॉन्फ्रेंस कॉल थी वो ,जुड़े जलद और चंद्रमा ,
चारों हम थे मिलने को |
मैं पहुँची रत्नाकर अँगना ,किया स्वागत उसने मुस्काकर ,
तभी नीचे आया चंद्रमा ,फैली चाँदनी चारों ओर ,
जलद भी आया मुस्काता ,थामे हाथ दामिनी और पवन का ,
खुश थे हम सब मिल करके |
अब तो महफ़िल जमी हमारी ,
रत्नाकर की लहरें मचलीं ,दामिनी,चाँदनी चम -चम चमकीं ,
पवन उड़ती रही चहुँ ओर ,मुस्कानों की सुंदर डोर ,
बातों का बढ़ चला सिलसिला ,उठा ठहाकों का भी शोर ,
खुश थे हम सब मिल करके |
साथ में चाय की चुस्कियाँ ,होठों पर थीं सबके मुस्कियाँ ,
स्नेस्क भी थे खूब चटपटे ,खाए गए चटखारे ले के ,
काश ये महफ़िल खूब चले ,प्यार सभी का फूले - फले ,
सबने मज़ा लिया भरपूर ,मज़ा लिया भरपूर |
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